योग परम्परा की ओर लौटने लगा भारतीय समाज

योग परम्परा की ओर लौटने लगा भारतीय समाज
योग परम्परा की ओर भारतीय समाज लौटने लगा है. हालांकि योग भारतीय जीवनशैली का हिस्सा है. योग हजारों सालों से भारत में एक परम्परा के रूप में रहा है. बदलते समय और पश्चिम अंधानुकरण ने हमारे योग को हाशिये पर डाल दिया था. भारतीय जीवन शैली आहिस्ता-आहिस्ता अपनी पुरातन जीवनशैली पर लौटने लगी है. हर उम्र और हर वर्ग के लिए योग जरूरी सा बन गया है. शिक्षण संस्थाओं में पाठ्यक्रम के रूप में योग को मान्यता मिल रही है. योग जीवन को स्वस्थ्य ही नहीं, आनंदित करने में भी अपनी भूमिका निभा रहा है योग से निरोगी बनने की यह प्रक्रिया. घर..घर योग..हरेक के लिए योग.

उल्लेखनीय है कि तीन बरस पहले देश के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी के अथक प्रयासों से पूरी दुनिया में भारत ने योग का परचम फहराया. संयुक्त राष्ट्रसंघ के कैलेंडर पर 21 जून भारतीय योग विद्या के लिए चिंहाकित किया गया. मोदी की पहल पर यह वह तारीख है जिस दिन भारत की प्राचीन योग परम्परा को संयुक्त राष्ट्र संघ ने स्वीकार किया और 21 जून की तारीख को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के रूप में मान्यता दी. साल 2014 में एक बार फिर पूरे संसार ने स्वीकार किया किया कि भारत विश्व विजयी है. दुनिया के कैलेंडर में 21 जून की तारीख हमेशा हमेशा के लिए अविस्मरणीय तारीख के रूप में अंकित हो चुका है. 21 जून पूरे कैलेंडर वर्ष का सबसे लम्बा दिन है। प्रकृति, सूर्य और उसका तेज इस दिन सबसे अधिक प्रभावी रहता है। इस दिन को किसी व्यक्ति विशेष को ध्यान में रखकर नहीं, बल्कि प्रकृति को ध्यान में रखकर चुना गया है। योग 5,000 साल पुरानी भारतीय शारीरिक मानसिक और आध्यात्मिक पद्धति है, जिसका लक्ष्य मानव शरीर और मस्तिष्क में सकारात्मक परिवर्तन लाना है।

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा था- ‘योग भारत की प्राचीन परंपरा का एक अमूल्य उपहार है यह दिमाग और शरीर की एकता का प्रतीक है; मनुष्य और प्रकृति के बीच सामंजस्य है; विचार, संयम और पूर्ति प्रदान करने वाला है तथा स्वास्थ्य और भलाई के लिए एक समग्र दृष्टिकोण को भी प्रदान करने वाला है। यह व्यायाम के बारे में नहीं है, लेकिन अपने भीतर एकता की भावना, दुनिया और प्रकृति की खोज के विषय में है। हमारी बदलती जीवन शैली में यह चेतना बनाकर, हमें जलवायु परिवर्तन से निपटने में मदद कर सकता है, तो आएं एक अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को गोद लेने की दिशा में काम करते हैं।’

इस बात को स्मरण में रखना चाहिए कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की पहल के पश्चात 21 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ घोषित किया गया। भारत के इस प्रस्ताव को 90 दिन के अंदर पूर्ण बहुमत से पारित किया गया, जो संयुक्त राष्ट्र संघ में किसी दिवस प्रस्ताव के लिए सबसे कम समय है। 11 दिसम्बर 2014 को संयुक्त राष्ट्र में 193 सदस्यों द्वारा 21 जून को ‘अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस’ को मनाने के प्रस्ताव को मंजूरी मिली। बेंगलुरू में 2011 में पहली बार दुनिया के अग्रणी योग गुरुओं ने मिलकर इस दिन ‘विश्व योग दिवस’ मनाने पर सहमति जताई थी।

भारत में योग परम्परा और शास्त्रों का विस्तृत इतिहास रहा है। जिस तरह राम के निशान इस भारतीय उपमहाद्वीप में जगह-जगह बिखरे पड़े हैं उसी तरह योगियों और तपस्वियों के निशान जंगलों, पहाड़ों और गुफाओं में आज भी देखे जा सकते हैं। माना जाता है कि योग का जन्म भारत में ही हुआ। गीता में श्रीकृष्ण ने एक स्थल पर कहा है ‘योगः कर्मसु कौशलम्’ (कर्मो में कुशलता को योग कहते हैं)। स्पष्ट है कि यह वाक्य योग की परिभाषा नहीं है। कुछ विद्वानों का यह मत है कि जीवात्मा और परमात्मा के मिल जाने को योग कहते हैं। बौद्धमतावलंबी भी योग शब्द का व्यवहार करते और योग का समर्थन करते हैं। यही बात सांख्यवादियों के लिए भी कही जा सकती है जो ईश्वर की सत्ता को असिद्ध मानते हैं। पंतजलि ने योगदर्शन में, जो परिभाषा दी है ‘
योगश्चित्तवृत्तिनिरोधः’, चित्त की वृत्तियों के निरोध- पूर्णतया रुक जाने का नाम योग है। इस वाक्य के दो अर्थ हो सकते हैं चित्तवृत्तियों के निरोध की अवस्था का नाम योग है या इस अवस्था को लाने के उपाय को योग कहते हैं। संक्षेप में आशय यह है कि योग के शास्त्रीय स्वरूप, उसके दार्शनिक आधार, को सम्यक् रूप से समझना बहुत सरल नहीं है। संसार को मिथ्या माननेवाला अद्वैतवादी भी निदिध्याह्न के नाम से उसका समर्थन करता है। अनीश्वरवादी सांख्य विद्वान भी उसका अनुमोदन करता है।

वहीं सांख्य दर्शन के अनुसार.. पुरुषप्रकृत्योर्वियोगेपि योगइत्यमिधीयते अर्थात् पुरुष एवं प्रकृति के पार्थक्य को स्थापित कर पुरुष का स्व स्वरूप में अवस्थित होना ही योग है.. विष्णु पुराण में कहा गया है कि.. योगः संयोग इत्युक्तः जीवात्म परमात्मने, अर्थात् जीवात्मा तथा परमात्मा का पूर्णतया मिलन ही योग है.. भगवद्गीता में कहा गया है कि सिद्दध्यसिद्दध्यो समोभूत्वा समत्वंयोग उच्चते अर्थात् दुःख-सुख, लाभ-अलाभ, शत्रु-मित्र, शीत और उष्ण आदि द्वन्दों में सर्वत्र समभाव रखना योग है.आचार्य हरिभद्र का मत है.. मोक्खेण जोयणाओ सव्वो वि धम्म ववहारो जोगो। मोक्ष से जोडऩे वाले सभी व्यवहार योग है हम सब मिलकर योग करें, मन को शुद्ध करें, चित्त को शांत करें और सकरात्मक सोच अपने भीतर उत्पन्न करें. सकरात्मक सोच विकास को दिशा देती है और सबका विकास, सबके साथ को मूर्तरूप देने के लिए योग विद्या एक उचित माध्यम है.
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