आर्यन शर्मा। बैंक रॉबरी पर बेस्ड फिल्म 'बैंक चोर' का प्रमोशन रितेश देशमुख ने रोचक अंदाज में किया था। उन्होंने डिफरेंट फिल्मों के पोस्टर को कॉपी करते हुए 'बैंक चोर' के लुक सोशल मीडिया पर साझा किए। इन पोस्टर्स को देखने पर लगता था कि यह फिल्म कुछ मसालेदार मनोरंजन परोसेगी, लेकिन अब जब फिल्म सिनेमाघरों में आ गई है तो उसे देखकर 'ऊंची दुकान फीका पकवान' वाली कहावत याद आने लगती है, यानी यह ऐसी दुकान की माफिक है, जिसके पकवान देखने में लुभाते हैं, लेकिन जब इन्हें चखा जाए तो मुंह का जायका बिगाड़ देते हैं। बम्पी निर्देशित यह फिल्म कॉमेडी और थ्रिल के मामले में अमैच्चोर है।
डायरेक्टर : बम्पी स्टार कास्ट : रितेश देशमुख, विवेक ओबेराय, रेहा चक्रवर्ती, भुवन अरोड़ा, साहिल वैद्य, विक्रम थापा, बाबा सहगल म्यूजिक : श्री श्रीराम, कैलाश खेर, बाबा सहगल, रोचक कोहली, समीर टंडन रेटिंग : 1.5 स्टार रनिंग टाइम : 120.09 मिनट
स्क्रिप्ट
फिल्म की कहानी तीन चोर मुम्बई निवासी चंपक (रितेश देशमुख) और दिल्लीवाले गुलाब व गेंदा के इर्द-गिर्द घूमती है, जो रॉबरी के इरादे से एक बैंक में घुसते हैं। लेकिन बैंक में उनकी हरकत इतनी बचकानी होती हैं, जिससे लगता है कि ये चोर नहीं, बल्कि किसी सर्कस के जोकर हैं। इधर, बैंक में चोरों के होने की खबर मीडिया और पुलिस को लग जाती है। बैंक में बंधक बने लोगों को बचाने का जिम्मा टफ सीबीआई ऑफिसर अमजद खान (विवेक ओबेराय) को दिया जाता है, वहीं जर्नलिस्ट गायत्री (रेहा चक्रवर्ती) वहां की खबरों से लोगों को रूबरू करवाती रहती है। इसके बाद कहानी ट्विस्ट्स और टन्र्स के साथ अंजाम तक पहुंचती है।
एक्टिंग
रितेश की एक्टिंग ठीक है, लेकिन वह खुद को दोहराते नजर आए। विवेक औसत हैं, उनका किरदार ढंग से नहीं लिखा गया। रेहा महज शोपीस की तरह हैं, एक्टिंग कुछ खास नहीं है। सबसे दमदार परफॉर्मेंस साहिल वैद की है। अभिनय के मामले में वह सब पर भारी पड़े हैं। भुवन अरोड़ा और विक्रम थापा की मासूमियत और जुगलबंदी अच्छी है।
डायरेक्शन
फिल्म की स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले में कसावट नहीं है। इंटरेस्टिंग सिचुएशंस क्रिएट की गई हैं, पर उनका प्रजेंटेशन कमजोर है। बम्पी के निर्देशन में वह धार नहीं है, जो 'बैंक चोर' को दर्शकों के दिलों में जगह दिला पाए। कुछ डायलॉग्स और वन लाइनर्स अच्छे हैं, लेकिन वह भी कॉमिक पंच के रूप में उभर कर नहीं आते। सिनेमैटोग्राफी ठीक है, पर संपादन की गुंजाइश है। बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है।
क्यों देखें :
फिल्म में बेतुके और सस्ते चुटकुलों को पिरोया गया है। शायद निर्देशक की यह सोच रही होगी कि ऐसे चुटकुलों से वह दर्शकों को गुदगुदा पाएंगे, लेकिन इसमें वह विफल साबित हुए हैं। जिस तरह फिल्म के तीनों चोरों में अनुभव और तालमेल की कमी दिखाई गई है, वैसी ही कमी इस फिल्म को बनाने में नजर आई। बहरहाल, 'बैंक चोर' देखने के बजाय आपके लिए टीवी पर किसी कॉमेडी शो का लुत्फ उठाना बेहतर रहेगा।
डायरेक्टर : बम्पी स्टार कास्ट : रितेश देशमुख, विवेक ओबेराय, रेहा चक्रवर्ती, भुवन अरोड़ा, साहिल वैद्य, विक्रम थापा, बाबा सहगल म्यूजिक : श्री श्रीराम, कैलाश खेर, बाबा सहगल, रोचक कोहली, समीर टंडन रेटिंग : 1.5 स्टार रनिंग टाइम : 120.09 मिनट
स्क्रिप्ट
फिल्म की कहानी तीन चोर मुम्बई निवासी चंपक (रितेश देशमुख) और दिल्लीवाले गुलाब व गेंदा के इर्द-गिर्द घूमती है, जो रॉबरी के इरादे से एक बैंक में घुसते हैं। लेकिन बैंक में उनकी हरकत इतनी बचकानी होती हैं, जिससे लगता है कि ये चोर नहीं, बल्कि किसी सर्कस के जोकर हैं। इधर, बैंक में चोरों के होने की खबर मीडिया और पुलिस को लग जाती है। बैंक में बंधक बने लोगों को बचाने का जिम्मा टफ सीबीआई ऑफिसर अमजद खान (विवेक ओबेराय) को दिया जाता है, वहीं जर्नलिस्ट गायत्री (रेहा चक्रवर्ती) वहां की खबरों से लोगों को रूबरू करवाती रहती है। इसके बाद कहानी ट्विस्ट्स और टन्र्स के साथ अंजाम तक पहुंचती है।
एक्टिंग
रितेश की एक्टिंग ठीक है, लेकिन वह खुद को दोहराते नजर आए। विवेक औसत हैं, उनका किरदार ढंग से नहीं लिखा गया। रेहा महज शोपीस की तरह हैं, एक्टिंग कुछ खास नहीं है। सबसे दमदार परफॉर्मेंस साहिल वैद की है। अभिनय के मामले में वह सब पर भारी पड़े हैं। भुवन अरोड़ा और विक्रम थापा की मासूमियत और जुगलबंदी अच्छी है।
डायरेक्शन
फिल्म की स्क्रिप्ट और स्क्रीनप्ले में कसावट नहीं है। इंटरेस्टिंग सिचुएशंस क्रिएट की गई हैं, पर उनका प्रजेंटेशन कमजोर है। बम्पी के निर्देशन में वह धार नहीं है, जो 'बैंक चोर' को दर्शकों के दिलों में जगह दिला पाए। कुछ डायलॉग्स और वन लाइनर्स अच्छे हैं, लेकिन वह भी कॉमिक पंच के रूप में उभर कर नहीं आते। सिनेमैटोग्राफी ठीक है, पर संपादन की गुंजाइश है। बैकग्राउंड स्कोर अच्छा है।
क्यों देखें :
फिल्म में बेतुके और सस्ते चुटकुलों को पिरोया गया है। शायद निर्देशक की यह सोच रही होगी कि ऐसे चुटकुलों से वह दर्शकों को गुदगुदा पाएंगे, लेकिन इसमें वह विफल साबित हुए हैं। जिस तरह फिल्म के तीनों चोरों में अनुभव और तालमेल की कमी दिखाई गई है, वैसी ही कमी इस फिल्म को बनाने में नजर आई। बहरहाल, 'बैंक चोर' देखने के बजाय आपके लिए टीवी पर किसी कॉमेडी शो का लुत्फ उठाना बेहतर रहेगा।
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